डॉ० मारूफ उर रहमान
सहायक आचार्य संस्कृत विभाग जाकिर हुसैन दिल्ली कॉलिज,
दिल्ली विश्वविद्यालय , दिल्ली
दुनिया में ऐसा कोई धर्म य सम्प्रदाय नहीं जो इंसानियत, दया, सहयोग, मुहब्बत, स्नेह, अमन और भाईचारे की बात न करता हो । गीता सामाजिक समरसता के साथ सद्भाव सिखाती है । गीता जीवन का शास्त्र है और कर्मयोग की शिक्षा देती है ।इसने इन्सानों को एक इंसानियत के सूत्र में बांधने का काम किया है। श्री कृष्ण ने अक्षैहिणी सेना के बीच मोह में फंसे और कर्म से विमुख अर्जुन को गीता का उपदेश दिया।
मानव जाति को एक ऐसे मार्गदर्शन और सिद्धांत की आवश्यकता है, जिससे कि वह अपने व्यक्तिगत व सामूहिक ज़िन्दगी का निर्माण कर सके और साथ ही साथ उसका हर तरफ विकास हो सके। उसके भौतिक एवं आर्थिक जीवन और उसके रूहानी एवं नैतिक पहलुओं के बीच आपसी टकराव न हो। गीता में इस सम्बन्ध में कहा गया- वे लोग जो त्याग का इरादा रखते हैं, मोह माया का जाल में न फंसे हो और जरा सा भी अहंकार न हो ऐसे लोग ही सुख का मीठा फल चखते हैं।
विहाय कामान्य: सर्वान्पुमांश्चरति नि:स्पृह:।
निर्ममो निरहड्कार: स शांतिमधिगच्छति।।
गीता की मुख्य शिक्षाएं - ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है, ईश्वर एक ही है, दुनिया में मोह माया का जाल है , निष्काम भावना यानि कि बिना बदल के लोगों को काम करना चाहिए आदि। ईश्वरीय सत्य ज्ञान के अनुसार करुणा, मेहरबानी, मुहब्बत, अमन, पवित्रता,सुख ,अहिंसा, सहयोग और सद्भावना आदि सकारात्मक गुण और इसके विपरीत अहंकार,अपवित्रता,काम, क्रोध, लोभ, ईष्र्या, हिंसा, अशांति आदि नकारात्मक गुण माने गए है।
गीता इन्सान की ज़िन्दगी में प्रेम और हक़ का पाठ पढ़ाती है। प्रेम ही ज़िन्दगी का आधार है। जिस इंसान की जिंदगी में प्रेम है ,उसकी जिंदगी में सुख और शान्ति होती है । मुहब्बत में थोड़े में भी सुकून होता है। दुर्योधन के जीवन में मुहब्बत नहीं थी इसलिए उसके मन में अहंकार, ईर्ष्या व जलन की भावना पूरी तरह प्रवेश कर गई थी। जिसके कारण उसका पतन हुआ। इसी तरह जिस इंसान की जिंदगी में ऐसी बुराईयां आ जाती हैं उसकी बर्बादी निश्चित होती है ।क्योंकि ऐसी बुराईयां दीमक की तरह इंसान को खोखला कर देती हैं। जो ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता हैं उसी का नजरिया सही है। जो मन को बस अर्थात नियंत्रित नहीं करते हैं उनके लिए वह दुश्मन जैसा काम करता है